ज्यों डूबे जहाज का पंछी
Jyo dube jahaj ka panchi
यों तेरी यादों के बादल
मन पर घिर आए
ज्यों डूबे जहाज़ का पंछी
जल पर मण्डराए ।
एक-स्मृति में
सौ-सौ छवियों का मेला
शान्त झील में जैसे कोई
फेंक गया ढेला
इन्द्रधनुष के रंग न जाने
कैसे तिर आए ।
कुहरे भरी रात में जैसे
सूर्य -किरण चमके
गूँज उठे सन्नाटे में
शहनाई थम-थम के
बार-बार मन यों देख रहा मन
सपने मन-भाए!