Hindi Poem of Dhananjay singh “Rom-Rom me sawan muskane laga”,”रोम-रोम में सावन मुसकाने लगा” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

रोम-रोम में सावन मुसकाने लगा

 Rom-Rom me sawan muskane laga

तुमने मेरे मन को ऐसे छू दिया

गानवती ज्यो कोई छू दे , सोये हुए सितार को

गूंगा मन जय-जयवंती गाने लगा ।

जाने क्या था

ढाई आखर नाम में

गति ने जन्म ले लिया

पूर्ण विराम में

रोम-रोम में सावन मुसकाने लगा ।

खुली हँसी के

ऐसे जटिल मुहावरे

कूट पद्य जिनके आगे

पानी भरे

प्रहेलिका-संकेतक भटकाने लगा ।

बिम्ब-प्रतीक न जिसका

चित्रण कर सकें

वर्ग-पहेली जिसे न हम

हल कर सकें

कोई मन को ऐसा उलझाने लगा ।

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