Hindi Poem of Dhananjay singh “Yaad ek gungunati hui khushbu ki”,”याद एक गुनगुनाती हुई ख़ुशबू की” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

याद एक गुनगुनाती हुई ख़ुशबू की

 Yaad ek gungunati hui khushbu ki

रोज़ रात को तीन बजे

एक ट्रेन मेरे दिल पर से गुज़रती है

और एक शहर मेरे अन्दर जाग कर सो जाता है

कहीं दूर से एक आवाज़ आती है

एक चाँद छपाक से पानी में कूद कर अँधेरे में खो गया है

समुद्र का शोर

लहरें गिनने में असमर्थ हो गया है

दिन के टुकड़े और रात की धज्जियों को

गिनना असम्भव है मेरे लिए

सिर्फ एक ख़ुशबू गुनगुनाती फिर रही है अभी भी-

‘सरे राह चलते-चलते’

ख़ुशबू ठहर गई है

और एक सूरज और एक शहर की आँखों में

समुन्दर उतर आए हैं!

अब भी रोज़ रात को

एक ट्रेन मेरे दिल से गुजरती है

और एक कला की देवी अपनी कला को

अमृत पिला जाती है ठीक उसी समय!

 

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