Hindi Poem of Dinesh Singh “Akela rah gya”,”अकेला रह गया” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

अकेला रह गया

 Akela rah gya

बीते दिसंबर तुम गए

लेकर बरस के दिन नए

पीछे पुराने साल का

जर्जर किला था ढह गया

मैं फिर अकेला रह गया

तुम आ गए

तो भा गए

इस ज़िन्दगी पर छा गए

जितना तुम्हारे पास था

वह दर्द मुझे थमा गए

वह प्यार था कि पहाड़ का

झरना रहा जो बह गया

मैं फिर अकेला रह गया

रे साइयाँ, परछाइयाँ

मरूभूमि की ये खाइयाँ

सुधि यों लहकती

ज्यों कि लपटें

आग की अँगनाइयाँ

हिलाता हुआ पिंजरा टँगा रह गया

पंछी दह गया

मैं फिर अकेला रह गया

तुम घर रहो

बाहर रहो

ऋतुराज के सर पर रहो

बौरी रहें अमराइयाँ

पिक का पिहिकता स्वर रहो

ये बोल आह-कराह के

हारा-थका मन कह गया

मैं फिर अकेला रह गया

 

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