Hindi Poem of Dinesh Singh “Dhup ke nakhre badhe”,”धूप के नखरे बढ़े” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

धूप के नखरे बढ़े

 Dhup ke nakhre badhe

शीत की अंगनाइयों में

धूप के नखरे बढ़े 

बीच घुटनों के धरे सिर

पत्तियों के ओढ़  सपने

नीम की छाया छितरकर

कटकटाती दाँत अपने

गोल कंदुक के हरे फल

छपरियों पर जा चढ़े 

फूल पीले कनेरों के

पेड़  के नीचे झरे तो

तालियों में बज रहें हैं

बेल के पत्ते हरे जो

एक मंदिर गर्भ गृह में

मूर्तियाँ मन की गढ़े

बहुत छोटे दिन

लिहाफों में बड़ी रातें छिपाकर

भागते हैं क्षिप्र गति में

अँधेरों में कहीं जाकर

शाम के दो जाम

ओठों पर चढ़े

शीशे मढ़े

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.