Hindi Poem of Dinesh Singh “Din ghatenge”,”दिन घटेंगे” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

दिन घटेंगे

 Din ghatenge

जनम के सिरजे हुए दुख

उम्र बन-बनकर कटेंगे

ज़िन्दगी के दिन घटेंगे

कुआँ अन्धा बिना पानी

घूमती यादें पुरानी

प्यास का होना वसन्ती

तितलियों से छेड़खानी

झरे फूलों से पहाड़े —

गन्ध के कब तक रटेंगे?

ज़िन्दगी के दिन घटेंगे

चढ़ गए सारे नसेड़ी

वक़्त की मीनार टेढ़ी

‘गिर रही है — गिर रही है’ —

हवाओं ने तान छेड़ी

मचेगी भगदड़ कि कितने स्वप्न

लाशों से पटेंगे?

ज़िन्दगी के दिन घटेंगे

परिन्दे फिर भी चमन में

खेत-बागों में कि वन में

चहचहाएँगे

नदी बहती रहेगी उसी धुन में   

चप्पुओं के स्वर लहर बनकर

कछारों तक उठेंगे

ज़िन्दगी के दिन घटेंगे

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