Hindi Poem of Dinesh Singh “Fir kali ki or”,”फिर कली की ओर” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

फिर कली की ओर

 Fir kali ki or

हम यहाँ हैं

और उलझी कहीं पीछे डोर

फूल कोई लौट जाना चाहता है

फिर, कली की ओर!

इस तरह भी कहीं होता है?

इस तरह तो नहीं होता है

सिर्फ़ होता है वही, जो सामने है ,

पीठ पीछे कौन होता है?

पीठ पीछे

सामने के बीच हम केवल

बहुत कमज़ोर!

फूल कोई लौट जाना चाहता है

फिर, कली की ओर!

मुश्किलों की याद आती है

यात्रा तो भूल जाती है

भूलने की बात भी तो भूलती है

भूल ही सब कुछ भुलाती है

जो भुलाए

भूल जाए ज़िन्दगी को

वही सीनाज़ोर!

फूल कोई लौट जाना चाहता है

फिर, कली की ओर!

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