Hindi Poem of Dinesh Singh “Hum dehri darvaje”,”हम देहरी-दरवाज़े !” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

हम देहरी-दरवाज़े !

 Hum dehri darvaje

राजपाट छोड़कर गए

राजे-महाराजे

हम उनके कर्ज पर टिके

देहरी-दरवाजे

चौपड़  ना बिछी पलंग पर

मेज़ पर बिछी

पैरों पर चाँदनी बिछी

सेज पर बिछी

गुहराते रोज़ ही रहे

धर्म के तकाजे

अपने-अपने हैं कानून

मुक्त है प्रजा

सड़ी-गली लाठी को है

भैंस ही सज़ा

न्यायालय: सूनी कुर्सी

क्या चढ़ी बिराजे!

चमकदार आँखें निरखें

गूलर का फूल

जो नही खिला अभी-कभी

किसी वन-बबूल

अंतरिक्ष में कहीं हुआ

तारों में छाजे

 

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