Hindi Poem of Dinesh Singh “Machliya”,”मछलियाँ” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

मछलियाँ

Machliya 

ताल से डरती मछलियाँ

जाल से डरती नहीं हैं

तडफड़ाती यों-

मछेरे लोच पर कुर्बान जाएँ

मुटि्‌ठयों में फिसलतीं

उद्‌दाम बलखाती अदाएँ

स्वाद उनका जान लें सब

साँस भी भरती नहीं है

उछलकर गहराइयों से

कश्तियों पर आ गिरी जो

मौत के आगोश में खुश हैं

सनक तक सिरफिरी जो

जहन्नुम के बगीचे में

घास भी चरती नहीं है

खंड-खंड कड़ाहियों में

यहाँ जाएँ-वहाँ जाएँ

खदबदाती, उबलती हैं

सुर्खरू होकर शिराएँ

शोरबे की ‘प्लेट’ में हैं

तनिक उफ़्फ़ करती नहीं हैं

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