Hindi Poem of Dinesh Singh “Naav ka dard”,”नाव का दर्द” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

नाव का दर्द

 Naav ka dard

मैं नैया

मेरी क़िस्मत में

लिक्खे हैं दो कूल-किनारे

पार उतारूँ

मैं सबको

मुझको ना कोई पार उतारे

जीवन की संगिनी बनी है

बहती नदिया – बहता पानी

क्या मज़ाल जो धार गह सकूँ

संग-संग बह लूँ मनमानी

कोई इस तट

बना खेवइया

उस तट कोई खड़ा पुकारे

उल्टी-सीधी लहरों से

लड़ने-भिड़ाने की नियति मिल गई

सख्त थपेड़ों की मारों से

कनपटियों की चूल हिल गई

औघट घाट लगे

तो जुटकर

छेद गिन रहे लाकड़हारे 

मेरी राह धरें पानी पर

उठती-गिरती वे पतवारें

जिनको ख़ुद का पता नहीं

रह-रहकर इधर-उधर मुँह मारें

गैरों के हाथों

कठपुतली-सा

जो नाचें उठ भिनसारे

मैं नैया

मेरी क़िस्मत में

लिक्खे हैं दो कूल-किनारे

 

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