Hindi Poem of Divik Ramesh “Hakim he”,” हाक़िम हैं” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

हाक़िम हैं

 Hakim he

हाकिम हैं बात का बुरा क्योंकर मनाइए

उनकी बला से मानिये या रूठ जाइए।

घर नहीं दीवानखाने आ गए हैं आप

अब उसूलन आप भी ताली बजाइए

लड़ गई आँखें मगर किस दौर में लड़ीं

है गरज जब आपकी तो खुद ही निभाइए

राह उनकी आप फिर राह पर आए क्यों

ज़ख़्मा गई आत्मा तो आप ही उठाइए

मालूम था आना ही है जब यार! इस जानिब

अपमान क्या और मान क्या अब भूल जाइए

मतलब कि पत्थरों ने ज़ख़्म आप को दिए

ख़ैर है अब भी दिविक जो लौट जाइए

 

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