Hindi Poem of Divik Ramesh “Khof ke bahar”,”ख़ौफ के बाहर” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

ख़ौफ के बाहर

Khof ke bahar

मैं चौंका जब कहा उसने

कि जब भी चाहा घर लौटना

लगता रहा ख़ौफ

गो कि हर्ज़ न था लौटने में

सोचता हूँ

लौटना तो चाहिए ही घर

जबकि रहना पड़ रहा हो कहीं

घर लौटने ही की तरह

लौटना

घर

दरअसल होता है

लौटना ख़ुद अपने में ।

घर

जब तक रहता है घर

कभी ख़त्म नहीं होती

उसकी द्वार-आँखों की

बेचैन उत्सुकताएँ

उसके आँगन-हृदय की

मचलती प्रतीक्षाएँ

 

 

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