Hindi Poem of Divik Ramesh “Mere bhi hatho me”,”मेरे भी हाथों में” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

मेरे भी हाथों में

 Mere bhi hatho me

मैं

अंगूठा छाप

होश तक नहीं जिसे

बढ़े हुए नाखूनों का

पीढ़ी दर पीढ़ी

रह रहा है जो

शरण में आपकी…

मॆं…

मैं तो बस इतना भर जानता हूँ

कि कल तक मैं

नहीं जी पा रहा था अपनी ज़िन्दगी।

कि कल तक मैं

डर रहा था इसी जिनावर से

जो अब ख़ुद डर रहा है मुझसे।

कि कल तक मैं

नहीं ले पा रहा था फल

अपने ही बिरछ का।

जाने क्या चमत्कार हुआ

जाने कहाँ समाया था यह ज़ोर

कि दिल चाहे है

रख लूँ हाथ

आज आपके कंधों पर।

कोई ख़ोप ही नहीं रहा।

नहीं जानता

कैसे कब किसने थमाया था यह

मेरे हाथों में।

पर जानता हूँ अब

और पूरे होशो-हवास में

कि लट्ठ अब

मेरे भी हाथों में है।

 

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.