Hindi Poem of Divik Ramesh “ Yaad aai prithvi”,” याद आई पृथ्वी” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

याद आई पृथ्वी

 Yaad aai prithvi

मैं उठा और उठता चला गया

जैसे कि तूफान!

जा लगा उस सीने से

बेहद करीबी अपने सीने से

जो था ही नहीं, कहीं

मेरे वज़ूद सा ।

मैं शान्त हुआ और खो गया

हालाँकि था ही क्या खोने को पर खो गया

ठीक बहला दिए गए किसी बच्चे की जिद-सा ।

मैंने देखा आकाश मुझमें डूब गया था

पूरा का पूरा ।

मैं मारता रहा हाथ-पाँव

लेता रहा आकाश हिलोरे ।

मैं उठा और चढ़ बैठा आकाश के कंधों पर ।

मुझे साँस मिली

जॆसे आकाश मेरा पिता हो ।

मैंने याद किया

बहुत याद किया पृथ्वी को

जो गायब थी मेरे पैरों से ।

यूँ मिली ही कब थी वह ।

मैंने याद किया

महज याद करने के लिए

ऒर लूटता रहा सुख औपचारिकता का

और सताता रहा याद को, रुलाता रहा ।

कितना शैतान था न मैं!

बहुत प्यार से देखा मुझे याद ने

लाड़ उमड़ आया था उसका

उसने मुझे छुआ ।

सामने वाले वृक्ष पर बैठी

मेरी दिवंगत माँ

जाने कब से निहार रही थी

यह किस्सा । नहीं जानता

मैं कब चटका और अपने से दूर हो गया

और बहुत करीब अपने पास आ गया ।

जाने क्या गुनगुनाता रहा देर तक

बैठा अपनी टाट बिछी पृथ्वी की गोद में ।

तुम कहाँ हो पृथ्वी

कहाँ किस टहनी पर अटकी हो

वृक्ष की! आओ और मेरे पाँवों को

जमीन दो ओ माँ ।

 

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