Hindi Poem of Dushyant Kumar “  Kaha to tay tha charaga har ek ghar ke liye“ , “कहाँ तो तय था चराग़ाँ हर एक घर के लिये” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

कहाँ तो तय था चराग़ाँ हर एक घर के लिये

 Kaha to tay tha charaga har ek ghar ke liye

 

कहाँ तो तय था चराग़ाँ हर एक घर के लिये

कहाँ चराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिये

यहाँ दरख़्तों के साये में धूप लगती है

चलो यहाँ से चले और उम्र भर के लिये

न हो क़मीज़ तो घुटनों से पेट ढक लेंगे

ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफ़र के लिये

ख़ुदा नहीं न सही आदमी का ख़्वाब सही

कोई हसीन नज़ारा तो है नज़र के लिये

वो मुतमइन हैं कि पत्थर पिघल नहीं सकता

मैं बेक़रार हूँ आवाज़ में असर के लिये

जियें तो अपने बग़ीचे में गुलमोहर के तले

मरें तो ग़ैर की गलियों में गुलमोहर के लिये.

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