Hindi Poem of Dushyant Kumar “  Nazar navaz nazara badal na jaye kahi“ , “नज़र-नवाज़ नज़ारा बदल न जाए कहीं” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

नज़र-नवाज़ नज़ारा बदल न जाए कहीं

 Nazar navaz nazara badal na jaye kahi

 

नज़र-नवाज़ नज़ारा बदल न जाए कहीं

जरा-सी बात है मुँह से निकल न जाए कहीं

वो देखते है तो लगता है नींव हिलती है

मेरे बयान को बंदिश निगल न जाए कहीं

यों मुझको ख़ुद पे बहुत ऐतबार है लेकिन

ये बर्फ आंच के आगे पिघल न जाए कहीं

चले हवा तो किवाड़ों को बंद कर लेना

ये गरम राख़ शरारों में ढल न जाए कहीं

तमाम रात तेरे मैकदे में मय पी है

तमाम उम्र नशे में निकल न जाए कहीं

कभी मचान पे चढ़ने की आरज़ू उभरी

कभी ये डर कि ये सीढ़ी फिसल न जाए कहीं

ये लोग होमो-हवन में यकीन रखते है

चलो यहां से चलें, हाथ जल न जाए कहीं

 

 

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.