Hindi Poem of Dwarika Prasad Maheshwari “Me suman hu“ , “मैं सुमन हूँ” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

मैं सुमन हूँ
Me suman hu

 

ग्रीष्म, वर्षा, शीत का अभ्यास मेरा;
झेलता हूँ मार मारूत की निरंतर,
खेलता यों जिंदगी का खेल हंसकर।
शूल का दिन रात मेरा साथ किंतु प्रसन्न मन हूँ
मैं सुमन हूँ…

तोड़ने को जिस किसी का हाथ बढ़ता,
मैं विहंस उसके गले का हार बनता;
राह पर बिछना कि चढ़ना देवता पर,
बात हैं मेरे लिए दोनों बराबर।
मैं लुटाने को हृदय में भरे स्नेहिल सुरभि-कन हूँ
मैं सुमन हूँ…

रूप का श्रृंगार यदि मैंने किया है,
साथ शव का भी हमेशा ही दिया है;
खिल उठा हूँ यदि सुनहरे प्रात में मैं,
मुस्कराया हूँ अंधेरी रात में मैं।
मानता सौन्दर्य को- जीवन-कला का संतुलन हूँ
मैं सुमन हूँ…

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