Hindi Poem of Dwarika Prasad Maheshwari “Mulmantra“ , “मूलमंत्र” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

मूलमंत्र
Mulmantra

 

मनचाही होती नहीं किसी की।
बिना चले कब कहाँ हुई है
मंज़िल पूरी यहाँ किसी की।।

पर्वत की चोटी छूने को
पर्वत पर चढ़ना पड़ता है।
सागर से मोती लाने को
गोता खाना ही पड़ता है।।

उद्यम किए बिना तो चींटी
भी अपना घर बना न पाती।
उद्यम किए बिना न सिंह को
भी अपना शिकार मिल पाता।।

इच्छान पूरी होती तब, जब
उसके साथ जुड़ा हो उद्यम।
प्राप्तथ सफलता करने का है,
‘मूल मंत्र’ उद्योग परिश्रम।।

 

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