Hindi Poem of Geeta Chaturvedi “Mantharta se thakan“ , “मंथरता से थकान” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

मंथरता से थकान
Mantharta se thakan

 

प्रेम तुम्हारी नीति थी मुझ पर राज करना तुम्हारी इच्छा
मैं तुम्हारी राजनीति से मारा गया

मेरे हृदय में हर पल मृत्यु का स्पंदन है
बाँह के पास एक नस उसी लय पर फड़कती है जिस पर दिल धड़कता है

इतने बरसों में इतने शहरों में इतने मकानों में इतनी तरहों सेरहता आया मैं
कि कई बार सुबह उठने पर यह अंदाज़ा नहीं होता कि
बाईं ओर को बाथरूम पड़ता है या बाल्कनी

इस महासागर में जितनी भी बूँदें हैं वे मेरे जिए हुए पल हैं
जितनी बूंदें छिपी हैं अनंत के मेघ और अमेघ में
दिखने पर वे भी ठीक ऐसी ही दिखती हैं

मैं बलता रहा दीप की बाती की तरह
जिसमें डूबा था वह तैल मुझे छलता रहा
भरी दोपहर बीच सड़क जलाया तुमने मुझे
मुझे कमतर जताने की तुम्हारी इस विनम्रता को चूमता हूं मैं

तुम आओ और मेरे पैरों में पहिया बन जाओ
इस मंथरता से थक चुका हूँ मैं
थकने के लिए अब मुझे गति चाहिए

 

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