प्रेम कविता
Prem Kavita
इच्छा की फ़िक्र किए बिना जीते चले जाना
पाँच हज़ार वर्ष से ज़्यादा हो चुकी है मेरी आयु
अदालत में अब तक लम्बित है मेरा मुक़दमा
सुनवाई के इंतज़ार से बड़ी सज़ा और क्या
बेतहाशा दुखती है कलाई के ऊपर एक नस
हृदय में उस कृत्य के लिए क्षमा उमड़ती है
जिसे मेरे अलावा बाक़ी सब ने अपराध मना
संविधान की क़िताब में इस पर कोई अनुच्छेद नहीं।