Hindi Poem of Geeta Chaturvedi “Thagi“ , “ठगी” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

ठगी
Thagi

 

जिसकी हर बात पर मैं भरोसा कर लेता था
उसने मुस्कुरा कर कहा
गंजे सिर पर बाल उग सकते हैं
मैंने उसे प्रयोग करने के लिए ख़र्च नज़र किया
(मैं तब से वैज्ञानिक क़िस्म के लोगों से ख़ाइफ़ हूँ)

उसने मुहब्बत के किसी मौक़े पर
मुझे एक गिलास पानी पिलाया
और उस श्रम का क़िस्सा सुनाया निस्पृहता से
जो उसने वह कुआँ खोदने में किया था
जिसमें सैकड़ों गिलास पसीना बह गया था

एक रात वह मेरे घर पहुँचा
और बीवी की बीमारी, बच्चों की स्कूल फीस
महीनों से एक ही कपड़ा पहनने की मजबूरी
और ज़्यादातर गुमसुम रहने वाली
एक लड़की की यादों को रोता रहा
वह साथ लाई शराब के कुछ गिलास छकना चाहता था
और बार-बार पूछता
भाभीजी तो घर पर नहीं हैं न

वह जब मेरे दफ़्तर आता
तब-तब मेरा बॉस मुझे बुलाकर पूछता उसके बारे में
उसके हुलिए में पता नहीं क्या था
कि समझदार क़िस्म के लोग उससे दूर हो जाते थे
और मुझे भी दूरियों के फ़ायदे बताते थे
जो लोग उससे पल भर भी बात करते
उसे शातिर ठग कहते
मुझे वह उस बौड़म से ज़्यादा नहीं लगता
जो मासूमियत को बेवक़ूफ़ी समझता हो
जिसे भान नहीं
मासूमियत इसलिए ज़िंदा है
कि ठगी भूखों न मर जाए

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