Hindi Poem of Ghalib “barshkal-e-girya-aashiq hai dekha chahiye, “बर्शकाल-ए-गिर्या-ए-आशिक़ है देखा चाहिए ” Complete Poem for Class 10 and Class 12

बर्शकाल-ए-गिर्या-ए-आशिक़ है देखा चाहिए – ग़ालिब

barshkal-e-girya-aashiq hai dekha chahiye -Ghalib

 

बर्शकाल-ए-गिर्या-ए-आशिक़ है देखा चाहिए
खिल गई मानिंद-ए-गुल सौ जा से दीवार-ए-चमन

उल्फ़त-ए-गुल से ग़लत है दावा-ए-वारस्तगी
सर्व है बा-वस्फ़-ए-आज़ादी गिरफ़्तार-ए-चमन

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