Hindi Poem of Ghalib “Gar tujh ko hai yakeen-e-eejabat dua na mang , “गर तुझ को है यक़ीन-ए-इजाबत दुआ न माँग ” Complete Poem for Class 10 and Class 12

गर तुझ को है यक़ीन-ए-इजाबत दुआ न माँग – ग़ालिब

Gar tujh ko hai yakeen-e-eejabat dua na mang -Ghalib

गर तुझ को है यक़ीन-ए-इजाबत दुआ न माँग
यानी बग़ैर-ए-यक-दिल-ए-बे-मुद्दआ न माँग

आता है दाग़-ए-हसरत-ए-दिल का शुमार याद
मुझ से मिरे गुनह का हिसाब ऐ ख़ुदा न माँग


अय आरज़ू शहीद-ए वफ़ा ख़ूं-बहा न माँग
जुज़ बहर-ए दसत-ओ-बाज़ू-ए क़ातिल दुआ न माँग

बर-हम है बज़म-ए ग़ुनचह ब यक जुनबिश-ए नशात
काशानह बसकि तनग है ग़ाफ़िल हवा न माँग

मैं दूर गरद-ए-अरज़-ए-रुसूम-ए-नियाज़ हूँ
दुशमन समझ वले निगह-ए आशना न माँग

यक-बख़त औज नज़र-ए-सुबुक-बारी-ए असद
सर पर वबाल-ए सायह-ए बाल-ए-हुमा न माँग

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