Hindi Poem of Ghalib “Mujh ko Dayar-e-Gher mein mara vatan se door , “मुझ को दयार-ए-ग़ैर में मारा वतन से दूर ” Complete Poem for Class 10 and Class 12
Hindi Poem of Ghalib “Mujh ko Dayar-e-Gher mein mara vatan se door , “मुझ को दयार-ए-ग़ैर में मारा वतन से दूर ” Complete Poem for Class 10 and Class 12
मुझ को दयार-ए-ग़ैर में मारा वतन से दूर – ग़ालिब
Mujh ko Dayar-e-Gher mein mara vatan se door -Ghalib
मुझ को दयार-ए-ग़ैर में मारा वतन से दूर
रख ली मिरे ख़ुदा ने मिरी बेकसी की शर्म
वह हल्क़ा-हा-ए-ज़ुल्फ़ कमीं में हैं या ख़ुदा
रख लीजो मेरे दावा-ए-वारस्तगी की शर्म
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