Hindi Poem of Ghalib “Safa-e-herat-e-aaina hai saman-e-jang aakhir , “सफ़ा-ए-हैरत-ए-आईना है सामान-ए-ज़ंग आख़िर ” Complete Poem for Class 10 and Class 12

सफ़ा-ए-हैरत-ए-आईना है सामान-ए-ज़ंग आख़िर – ग़ालिब

Safa-e-herat-e-aaina hai saman-e-jang aakhir -Ghalib

 

सफ़ा-ए-हैरत-ए-आईना है सामान-ए-ज़ंग आख़िर
तग़य्युर आब-ए-बर-जा-मांदा का पाता है रंग आख़िर

न की सामान-ए-ऐश-ओ-जाह ने तदबीर वहशत की
हुआ जाम-ए-ज़मुर्रद भी मुझे दाग़-ए-पलंग आख़िर

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