Hindi Poem of Ghalib “Vaa us ko hol-e-dil hai to yaa mein hu sharam-saar , “वां उस को हौल-ए-दिल है तो यां मैं हूं शरम-सार ” Complete Poem for Class 10 and Class 12

वां उस को हौल-ए-दिल है तो यां मैं हूं शरम-सार – ग़ालिब

Vaa us ko hol-e-dil hai to yaa mein hu sharam-saar -Ghalib

 

वाँ उस को हौल-ए-दिल है तो याँ मैं हूँ शर्म-सार
यानी ये मेरी आह की तासीर से न हो

अपने को देखता नहीं ज़ौक़-ए-सितम को देख
आईना ता-कि दीदा-ए-नख़चीरर से न हो

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