Hindi Poem of Ghalib “Vusat-s-iye-karam dekh ki sar-ta-sar-e-khak, “वुसअत-स-ईए-करम देख कि सर-ता-सर-ए-ख़ाक” Complete Poem for Class 10 and Class 12

वुसअत-स-ईए-करम देख कि सर-ता-सर-ए-ख़ाक – ग़ालिब

Vusat-s-iye-karam dekh ki sar-ta-sar-e-khak -Ghalib

 

वुसअत-ए-सई-ए-करम देख कि सर-ता-सर-ए-ख़ाक
गुज़रे है आबला-पा अब्र-ए-गुहर-बार हुनूज़

यक-क़लम काग़ज़-ए-आतिश-ज़दा है सफ़्हा-ए-दश्त
नक़्श-ए-पा में है तब-ए-गर्मी-ए-रफ़्तार हुनूज़

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