Hindi Poem of Ghalib “Zahar-e-Gham kar chuka tha mera kaam , “ज़हर-ए-ग़म कर चुका था मेरा काम” Complete Poem for Class 10 and Class 12

ज़हर-ए-ग़म कर चुका था मेरा काम – ग़ालिब

Zahar-e-Gham kar chuka tha mera kaam -Ghalib

 

न होगा यक बयाबाँ माँदगी से ज़ौक़ कम मेरा
हुबाब-ए-मौज-ए-रफ़्तार है, नक़्श-ए-क़दम मेरा

मुहब्बत थी चमन से, लेकिन अब ये बेदिमाग़ी है
के मौज-ए-बू-ए-गुल से नाक में आता है दम मेरा

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.