Hindi Poem of Giridhar “Jako dhan, dharti hari“ , “जाको धन, धरती हरी” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

जाको धन, धरती हरी
Jako dhan, dharti hari

 

जाको धन, धरती हरी, ताहि न लीजै संग।
ओ संग राखै ही बनै, तो करि राखु अपंग॥

तो करि राखु अपंग, भीलि परतीति न कीजै।
सौ सौगन्दें खाय, चित्त में एक न दीजै॥

कह गिरिधर कविराय, कबहुँ विश्वास न वाको।
रिपु समान परिहरिय, हरी धन, धरती जाको॥

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