Hindi Poem of Gopal Prasad Vyas “Bhens“ , “भैंस” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

भैंस
Bhens

ओ, बाबूजी की डबल भैंस!
मेरी कुटिया में घुस आई
तू बाबूजी की डबल भैंस!
ओ, बाबूजी की डबल भैंस!

ओ काली-सी, मतवाली-सी,
क्यों बिना सूचना घुस आई?
समझा होगा शायद तूने
इसको कालिज का खुला ‘मैस’
ओ, बाबूजी की…।

ऐ भैंस! अभी तक मैं तुझको
अक्कल से बड़ी समझता था।
ऐ महिषी! अब तक मैं तुझको,
अपरूप सुंदरी कहता था।

तेरी जलक्रीड़ा मुझे बहुत ही
सुंदर लगती थी, रानी!
तेरे स्वर का अनुकरण नहीं
कर सकता था कोई प्राणी

पर आज मुझे मालूम हुआ
तू निरी भैंस है, मोटी है,
काली है, फूहड़ है, थुल-थुल,
मरखनी, रैंकनी, खोटी है।

मेरे ही घर में आज चली
तू पाकिस्तान बनाने को?
मेरी ही हिन्दी में बैठी
तू जनपद नया बसाने को?
मैं कहता हूं, हट जा, हट जा,
वरना मुझको आ रहा तैश
ओ बाबूजी की…

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