Hindi Poem of Gopaldas Neeraj “Tamam umra me ek ajnabi ke ghar me raha“ , “तमाम उम्र मैं इक अजनबी के घर में रहा” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

तमाम उम्र मैं इक अजनबी के घर में रहा

Tamam umra me ek ajnabi ke ghar me raha

तमाम उम्र मैं इक अजनबी के घर में रहा ।

सफ़र न करते हुए भी किसी सफ़र में रहा ।

वो जिस्म ही था जो भटका किया ज़माने में,

हृदय तो मेरा हमेशा तेरी डगर में रहा ।

तू ढूँढ़ता था जिसे जा के बृज के गोकुल में,

वो श्याम तो किसी मीरा की चश्मे-तर में रहा ।

वो और ही थे जिन्हें थी ख़बर सितारों की,

मेरा ये देश तो रोटी की ही ख़बर में रहा ।

हज़ारों रत्न थे उस जौहरी की झोली में,

उसे कुछ भी न मिला जो अगर-मगर में रहा ।

 

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