Hindi Poem of Gopikrishan Gopesh “Varsha ke megh kate”,”वर्षा के मेघ कटे” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

वर्षा के मेघ कटे

 Varsha ke megh kate

वर्षा के मेघ कटे-

रहे-रहे आसमान बहुत साफ़ हो गया है,

वर्षा के मेघ कटे!

पेड़ों की छाँव ज़रा और हरी हो गई है,

बाग़ में बग़ीचों में और तरी हो गई है

राहों पर मेंढक अब सदा नहीं मिलते हैं

पौधों की शाखों पर काँटे तक खिलते हैं

चन्दा मुस्काता है;

मधुर गीत गाता है

घटे-घटे,

अब तो दिनमान घटे!

वर्षा के मेघ घटे!!

ताल का, तलैया का जल जैसे धुल गया है;

लहर-लहर लेती है, एक राज खुल गया है

डालों पर डोल-डोल गौरैया गाती है

ऐसे में अचानक ही धरती भर आती है

कोई क्यों सजता है

अन्तर ज्यों बजता है

हटे-हटे

अब तो दुःख-दाह हटे!

वर्षा के मेघ कटे!!

साँस-साँस कहती है- तपन ज़र्द हो गई है

प्राण सघन हो उठे हैं, हवा सर्द हो गई है

अपने-बेगाने

अब बहुत याद आते हैं

परदेसी-पाहुन क्यों नहीं लौट आते हैं?

भूलें ज्यों भूल हुई

कलियाँ ज्यों फूल हुईं

सपनों की सूरत-सी

मन्दिर की मूरत-सी

रटे-रटे

कोई दिन-रैन रटे ।

वर्षा के मेघ कटे ।

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