किस को पार उतारा तुम ने किस को पार उतारोगे
Kis ko par utara tum ne kis ko par utaroge
किस को पार उतारा तुम ने किस को पार उतारोगे
मल्लाहो तुम परदेसी को बीच भँवर में मारोगे
मुँह देखे की मीठी बातें सुनते इतनी उम्र हुई
आँख से ओझल होते होते जी से हें बिसारोगे
आज तो हम को पागल कह लो पत्थर फेंको तंज़ करो
इश्क़ की बाज़ी खेल नहीं है खेलोगे तो हारोगे
अहल-ए-वफ़ा से तर्क-ए-ताल्लुक़ कर लो पर इक बात कहें
कल तुम इन को याद करोगे कल तुम इन्हें पुकारोगे
उन से हम से प्यार का रिश्ता ऐ दिल छोड़ो भूल चुको
वक़्त ने सब कुछ मेट दिया है अब क्या नक़्श उभारोगे
‘इंशा’ को किसी सोच में डूबे दर पर बैठे देर हुई
कब तक उस के बख़्त के बदल अपने बाल सँवारोगे