Hindi Poem of Jagdish Gupt “ Kavi vahi”,”कवि वही” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

कवि वही

 Kavi vahi

 

कवि वही जो अकथनीय कहे

किंतु सारी मुखरता के बीच मौन रहे

शब्द गूँथे स्वयं अपने गूथने पर

कभी रीझे कभी खीझे कभी बोल सहे

कवि वही जो अकथनीय कहे

सिद्ध हो जिसको मनोमय मुक्ति का सौंदर्य साधन

भाव झंकृति रूप जिसका अलंकृति जिसका प्रसाधन

सिर्फ़ अपना ही नहीं सबका ताप जिसे दहे

रूष्ट हो तो जगा दे आक्रोश नभ का

द्रवित हो तो सृष्टि सारी साथ-साथ बहे।

शक्ति के संचार से

या अर्थ के संभार से

प्रबल झंझावात से

या घात-प्रत्याघात से

जहां थकने लगे वाणी स्वयं हाथ गहे।

शांति मन में क्रांति का संकल्प लेकर टिकी हो

कहीं भी गिरवी न हो ईमान जिसका

कहीं भी प्रज्ञा न जिसकी बिकी हो

जो निरंतर नयी रचना-धर्मिता से रहे पूरित

लेखनी जिसकी कलुष में डूब कर भी

विशद उज्जवल कीर्ति लाभ लहे

कवि वही जो अकथनीय कहे

 

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