Hindi Poem of Jagdish Gupt “  Prakriti ramnik he”,”प्रकृति रमणीक है” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

प्रकृति रमणीक है

 Prakriti ramnik he

 

प्रकृति रमणीक है।

जिसने इतना ही कहा

उसने संकुल सौंदर्य के घनीभूत भार को

आत्मा के कंधों पर

पूरा नहीं सहा!

भीतर तक

क्षण भर भी छुआ यदि होता

सौंदर्य की शिखाओं ने,

जल जाता शब्द-शब्द,

रहता बस अर्थकुल मौन शेष।

ऐसा मौन-जिसकी शिराओं में,

सारा आवेग-सिंधु,

पारे-सा

इधर-उधर फिरता बहा-बहा!

प्रकृति ममतालु है!

दूधभरी वत्सलता से भीगी

छाया का आँचल पसारती,

-ममता है!

स्निग्ध रश्मि-राखी के बंधन से बांधती,

-निर्मल सहोदरा है!

बाँहों की वल्लरि से तन-तरू को

रोम-रोम कसती-सी!

औरों की आँखों से बचा-बचा-

दे जाती स्पर्शों के अनगूंथे फूलों की पंक्तियाँ-

प्रकृति प्रणयिनी है!

बूंद-बूंद रिसते इस जीवन को, बांध मृत्यु -अंजलि में

भय के वनांतर में उदासीन

शांत देव-प्रतिमा है!

मेरे सम्मोहित विमुग्ध जलज-अंतस्‌ पर खिंची हुई

प्रकृति एक विद्युत की लीक है!

ठहरों कुछ, पहले अपने को, उससे सुलझा लूँ

तब कहूँ- प्रकृति रमणीक है…

 

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