Hindi Poem of Jagdish Gupt “ Saanjh 13”,”साँझ-13” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

साँझ-13

 Saanjh 13

 

फिर भी न तुम्हें मैं देखँू,

अखिर यह कैसी बातें।

जायेंगी बिन बरसे ही,

क्या यह रस की बरसातें।।१८१।।

वह कौन गगन में प्रतिदन,

दामिनी-कवच कस आता।

ले इन्दर्-धनुष हाथों में,

बँूदों के तीर चलाता।।१८२।।

घायल है सारी धरती,

छिद-छिद कर जल-बाणों से।

मैं सब कुछ देख रहा हँू,

अपना मन मौन मसोसे।।१८३।।

पंथी हँू, पथ भूला हँू,

जीवन की दोपहरी में।

जाने दो दोपल पलकें,

लग, दृग-छाया गहरी में।।१८४।।

वरूनी के कुंज कटीले,

फिर भी कितने सुखदाई।

पुतली से छलक रही है,

जैसे शीतल तरलाई।।१८५।।

काजल की काली रेखा,

जल-भरी बदिलयों जैसी।

श्रम, तृषा, जलन, हरने को,

घिर-घिर आती है कैसी।।१र्८६।।

अरूणाई के मृदु डोरे,

डूबे रँग में ऊषा के।

सुलझा न सका हँू मैं भी,

जिन में निज को उलझा के।।१८७।।

जगमग-जगमग हो उठता,

किसकी छिव से उर-आसन।

तुम कौन किया करते हो,

मेरी साँसों पर शासन।।१८८।।

आदेश दृष्टि उठते ही ,

शत शत दृग झुक जाते हैं ।

ये बंदी प्राण बिचारे,

दिन रात विरूद गाते हैं।।१८९।।

शापित है विधि कृति कह कर,

सह ही लेंगे दुःख सारा।

तुम सुखी रहो निश्चल हो,

युग युग तक विभव तुम्हारा।।१९०।।

मैं बैठ गया अवनी पर,

दुख में खोया खोया सा।

तरू छाया थी शीतल या,

कोई सपना सोया सा।।१९१।।

पग पग पर मैने अपने,

चंचल प्राणों को रोका।

पर बहा ले गया बरबस,

उनकी सांसों का झोंका।।१९२।।

यह किस प्रदेश की भूली,

भाषा सिखते रहते हैं।

मुख पर आंसू अक्षर से,

दृग क्या लिखते रहते हैं।।१९३।।

सारे आंसू कल सूखे,

पलकें रूक कर झुक जायें।

जब दोनो नयन अभागे

पथ देख देख पथरायें।।१९४।।

तब दबे पांव तुम आना,

चुपचाप चुराने साँसें।

जायेंगी निकल स्वयं ही,

तन से समीर की फाँसें।।१९५।।

 

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