Hindi Poem of Jagdish Gupt “ Saanjh 14”,”साँझ-14” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

साँझ-14

 Saanjh 14

 

यौवन की आतुरता में ,

ेजो भूल कभी हो जाती।

जीवन भर उसकी सुधि से,

दहका करती है छाती।।१९६।।

तज कर यथाथर् की कटुता,

कैसे भ्िवष्य को आँकँू।

अपनो की निमर्मता को,

कब तक सपनों से ढाँकँू।।१९७।।

शत झंझावात प्रलय के,

सोते हैं इसी हृदय में।

इतने कोमल कंपन भी,

होते हैं इसी हृदय में।।१९८।।

जीवन की समरसता को,

हम कितना आैर सराहें।

अधखुले तुम्हारे लोचन,

अधखिली हमारी चाहें।।१९९।।

जाने कितनी कोमलता,

मेरे उर में संिचत है।

पर निष्ठुर तुम्हारा वैभव,

अब भी उससे वंिचत है।।२००।।

तुम हो तटस्थ गिरिमाला,

मैं मधु-निझर्र निमर्ल हँू।

जितने ही तुम निष्ठुर हो,

उतना ही मैं कोमल हँू।।२०१।।

विश्वास करो तुम मेरी,

निश्वासों के क्रंदन पर।

विश्वास करो तुम मेरी,

पीड़ा के भोलेपन पर।।२०२।।

डालो न हँसी की चादर,

अभिलाषाआें के शव पर।

ेविश्वास करो तुम मेरे,

निश्वासों के शैशव पर।।२०३।।

अधरों में मृत्यु सजाकर,

जीवन को बहलाऊँगा।

दोगे यदि मुझे गरल भी,

चुपके से पी जाऊँगा।।२०४।।

तुम मौन देखते रहना,

किंिचत भी तड़प न होगी।

निश्चलता अचल बनेगी,

जैसे समाधि में योगी।।२०५।।

रजनी कीं निमर्मता से,

दिन के सुकुमार मिलन को।

यह साँझ सतत गँूथेगी,

किरनों से हास-रूदन को।।२०६।।

पुतली के घिरे तिमर पर,

संध्या की आभा छाई।

पीली पलकों के नीचे,

कितनी लालिमा समाई।।२०७।।

यौवन के ज्वाला-बन में,

लपटों की ललित लतायें।

अंगार-कुसुम बरसाकर,

भय है, न कहीं बुझ जायें।।२०८।।

जीवन की क्षण भंगुरता,

छू-छू कर हँसते-हँसते।

ऊषा की दीपिशखा पर,

तारों के शलभ झुलसते।।२०९।।

सीमित असीम हो उठना,

अभिलाषाआें का क्रम है,

चिर प्यास अमर जीवन है,

संतोष एक विभर्म है।।२१०।।

 

 

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