Hindi Poem of Jagdish Gupt “ Saanjh 16”,”साँझ-16” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

साँझ-16

 Saanjh 16

 

पागलपन के धागों में, 

सारी तरूनाई बुन दँू। 

चंदा की चल पलकों पर, 

चुपके से चुम्बन चुन दँू।।२२६।।

स्वीकृत-िसंकेत तुम्हारे, 

मेरे समीप तक आयें। 

घन अंधकार में जैसे, 

कोई प्रदीप जल जाये।।२२७।। 

फिर से निवार्सन पाये,

अवसाद-यक्ष उर थामें।

बन कर कुबेर रम जाऊँ।

इन अलकों की अलका में।।२२८।। 

फिर विरह-क्षीण क्षण-क्षण हो, 

करूणा-यक्षिणी-बिचारी।

संदेश स्नेह का लाये,

मन-मेघदूत बलिहारी।।२२९।।

प्राणों की पुरवाई में, 

जब कसक चोट उठती है।

वेदना पुरानी कोई, 

बरबस कचोट उठती है।।२३०।। 

जब नत-नयनों में सोकर, 

कोई सपना जगता है।

तब मन के भीतर-भीतर,

जाने कैसा लगता है।।२३१।।

पलकों के चपल पुलिन में, 

वहती अबोध जल-धारा।

कर गया क्षार जीवन को, 

निमर्म लावण्य तुम्हारा।।२३२।।

जीवन-प्रवाह गतिमय हो,

बह चलें व्यथाऐं निमर्ल।

धरती को रसमय कर दें, 

मेरी करूणा के बादल।।२३३।। 

विस्तृत नीरद बन-बनकर, 

अवनी-अम्बर को छालँू।

सारी संसृति के दुख को, 

पलकों की आेट छिपालँू।।२३४।।

खो जाये श्रम-विहवलता,

अरमानों की माया में।

पलभर को जग सो जाये, 

मेरे दुख की छाया में।।२३५।। 

पड़ जाय क्षार में साँसें, 

जीवन की बौछारों से। 

नन्हा सा हृदय कणो का,

सिंच जाये रसधारों से।।२३६।। 

तिलमिला उठें सब तारे, 

डगमगा उठे भूमंडल।

उल्काआें के ताण्डव से,

हो खण्ड-खण्ड आखण्डल।।२३७।।

जड़ता समीर में आये, 

चाहे धर्ुव भी चंचल हो।

साधना-पंथ पर फिर भी, 

मेरा मन अडिग-अचल हो।।२३८।।

पल भर जिसके दशर्न से, 

प्राणी निज व्यथा भुला ले।

कमनीय कामना मेरी, 

कल्पना-लोक रच डाले।।२३९।।

रसभीनी झंकारों से, 

तारों का हृदय हिलाऊँ।

इस विकल विश्व-वीणा में, 

स्वर भरा तार बन जाऊँ।।२४०।।

 

 

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