Hindi Poem of Jagdish Gupt “  Saanjh 4”,”साँझ-4” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

साँझ-4

 Saanjh 4

 

उत्सुक नयनों से देखा,

सपनों का लिया सहारा।

पर मिला नहीं उस छिव का,

कोई भी कूल-किनारा।।४६।।

कोमल कोमल पंखुरियाँ,

लिपटीं थीं भोलेपन से।

विह्वल अलि अभिलाषा के,

उड़ चले अभागे मन से।।४७।।

चू पड़े अविकिसत किल पर,

कुछ आेस-बिंदु आँसू के।

हैं पलकें विकल अभी तक,

जल बिखर गया, दृग चूके।।४८।।

ज्वाला सी उठी हृदय में,

अधरों के आलिंगन से।

भूचाल आ गया सहसा,

अन्तरतम के कंपन से।।४९।।

उन बड़ी-बड़ी आखों में,

वे बड़ी-बड़ी दो बँूदे।

पड़ गई सोच में, कैसे,

मन के रहस्य को मूँदें।।५०।।

उस मधुर सलोनी छिव को,

छूकर दोनों दृग पुलके।

सिहरी-सिहरी पलकों पर,

आँसू के श्रम-कण ढुलके।।५१।।

चितवन की मधुराई का,

आस्वादन जलन सदृश था।

थी एक नयन में मदिरा,

दूसरे नयन में विष था।।५२।।

दी खींच हृदय पर रेखा,

उन अनियारे नयनों ने।

अन्तर के कोमल कोने,

छू दिये चपल पलकों ने।।५३।।

आकुल केकी-दल नाचा,

सुन मधुर-मधुर मृदु गजर्न।

कर गई मेघ-मालाएँ,

जीवन का मुखर-विसजर्न।।५४।।

कसमसा उठे आलिंगन,

हो बैठे नयन तरल से।

खिंच गये स्नेह  के बंधन

कुछ आैर भीग कर जल से।।५५।।

नभ देख रहा था भू के

यौवन की फुलवारी को।

भू देख रही थी नभ को,

नयनों की लाचारी को।।५६।।

बढ़ती ही गई दिनोदिन,

दोनों की देखा-देखी।

सहसा नभ ने उर-पट पर,

करूणा की रेखा देखी।।५७।।

क्रीड़ा छिप गई क्षणों में,

पीड़ा ही मैंने जानी।

वह एक ठेस मीठी सी,

वन बैठी सजल कहानी।।५८।।

मैं चौंक उठा अपने में,

जैसे कुछ खो बैठा था।

केवल दो चार क्षणों में,

क्या से क्या हो बैठा था।।५९।।

शशि को पुतली में भर कर,

जब से मैंने-दृग-मींचे।

कितने सागर लहराये,

भीगी पलकों के नीचे।।६०।।

 

 

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