Hindi Poem of Jagdish Gupt “  Saanjh 6”,”साँझ-6” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

साँझ-6

 Saanjh 6

 

मत मेरी आेर निहारो,

मेेरी आँखें हैं सूनी।

फिर सुलग उठेंगी सँासें,

फिर धधक उठेगी धूनी।।७६।।

धीरे-धीरे होता है,

उर पर प्रहार आँसू का।

नभ से कुछ तारे टूटे,

बँध गया तार आँसू का।।७७।।

तटहीन व्योम-गंगा में,

तारापित-तरनी तिरती।

तारक बुदबुद उठते हैं,

पतवार किरन की गिरती।।७८।।

छिप गया किसी झुरमुट में,

मेरे मन का यदुवंशी।

करूणा-कानन में गँूजी,

आकुल प्राणों की वंशी।।७९।।

स्वर-स्वगर्ंगा लहराई,

उर-वीणा के तारों में।

खो गई हृदय की तरणी,

लहरीली झँकारों में।।८०।।

सासों से अनुप्राणित हो,

कोमल कोमल स्वर-लहरी।

कानों के मग से आकर,

सूने मानस में ठहरी।।८१।।

चंचल हो चली उँगलियाँ,

छिदर्ान्वेषण करने को।

पर नाच उठीं जाने क्यों,

मुरली का मन हरने को।।८२।।

आगत की स्वर-लहरी में,

झलके अतीत के आँसू।

किसने तारों को छेड़ा,

आगये गीत के आँसू।।८३।।

कुछ डूब गये थे तारे,

छिव-धारायें उिमर्ल थी।

रजनी की काली आँखें,

हो चली तिनक तिन्दर्ल थी।।८४।।

दुख कहते हैं, पग-पग पर,

करूणा का सम्बल देंगे।

जीवन की हर मंिजल पर,

दृग कहते हैं, जल देंगे।।८५।।

आशा प्रदिशर्का बनकर

करती निदेर्श दिशा का।

मैं सोच रहा हँू – चल दँू,

ज्यों ही हो अन्त निशा का।।८६।।

कोलाहल-मय जगती के,

त्यागे आह्वान घनेरे।

फिर भी एकाकीपन में,

मुझको मेरे दुख घेरे।।८७।।

काली-काली रजनी में,

काले बादल घिर आये।

या बुझे हुये सपने हैं,

नभ के नयनों में छाये।।८८।।

चाँदनी पी गई आँखें,

छलके पलकों के साथी।

माधुरी अधिक थी विधु में,

या सुधि में अधिक सुधा थी।।८९।।

प्यासी पलको पर उतरी,

पूनो के शशि की किरने।

घुल-घुल कर पिघल-पिघल कर,

फिर लगीं बिखरने, गिरने।।९०।।

 

 

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