स्पर्श गीत
Sparsh geet
शब्द से मुझको छुओ फिर,
देह के ये स्पर्श दाहक हैं।
एक झूठी जिंदगी के बोल हैं,
उद्धोष हैं चल के,
ये असह,
ये बहुत ही अस्थिर,
बहुत हलके-
महज बहुरूपिया हैं
जो रहा अवशेष
उस विश्वास के भी क्रूर गाहक हैं।
इन्हें इनका रूप असली दो
सत्य से मुझको छुओ फिर।
पूर दो गंगाजली की धार से,
प्राण की इस शुष्क वृंदा को
पिपासित आलबाल:
मंजरी की गंध से नव अर्थ हों अभिषिक्त
अर्थ से मुझको छुओ फिर।
सतह के ये स्पर्श उस तल तक नहीं जाते,
जहां मैं चाहता हूँ तुम छुओ मुझको।