Hindi Poem of Jayshankar Prasad “Biti Vibhavari Jag Ri”, “ बीती विभावरी जाग री ” Complete Poem for Class 10 and Class 12

बीती विभावरी जाग री 

Biti Vibhavari Jag Ri

 

बीती विभावरी जाग री!
अम्बर पनघट में डुबो रही-
तारा-घट ऊषा नागरी।

खग-कुल कुल-कुल-सा बोल रहा,
किसलय का अंचल डोल रहा,
लो यह लतिका भी भर लाई-
मधु मुकुल नवल रस गागरी।

अधरों में राग अमंद पिए,
अलकों में मलयज बंद किए-
तू अब तक सोई है आली!
आँखों में भरे विहाग री।

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