Hindi Poem of Kabir “Bhram Bindhoswa ka ang, “भ्रम-बिधोंसवा का अंग ” Complete Poem for Class 10 and Class 12

भ्रम-बिधोंसवा का अंग -कबीर

Bhram Bindhoswa ka ang -Kabir

 

जेती देखौं आत्मा, तेता सालिगराम ।
साधू प्रतषि देव हैं, नहीं पाथर सूं काम ॥1॥

जप तप दीसैं थोथरा, तीरथ ब्रत बेसास ।
सूवै सैंबल सेविया, यौं जग चल्या निरास ॥2॥

तीरथ तो सब बेलड़ी, सब जग मेल्या छाइ ।
‘कबीर’ मूल निकंदिया, कौंण हलाहल खाइ ॥3॥

मन मथुरा दिल द्वारिका, काया कासी जाणि ।
दसवां द्वारा देहुरा, तामैं जोति पिछाणि ॥4॥

‘कबीर’ दुनिया देहुरै, सीस नवांवण जाइ ।
हिरदा भीतर हरि बसै, तू ताही सौं ल्यौ लाइ ॥5॥

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