Hindi Poem of Kabir “Jeevan Mritak ka ang, “जीवन-मृतक का अंग ” Complete Poem for Class 10 and Class 12

जीवन-मृतक का अंग -कबीर

Jeevan Mritak ka ang -Kabir

 

कबीर मन मृतक भया, दुर्बल भया सरीर ।
तब पैंडे लागा हरि फिरै, कहत कबीर ,कबीर ॥1॥

जीवन तै मरिबो भलौ, जो मरि जानैं कोइ ।
मरनैं पहली जे मरै, तो कलि अजरावर होइ ॥2॥

आपा मेट्या हरि मिलै, हरि मेट्या सब जाइ ।
अकथ कहाणी प्रेम की, कह्यां न कोउ पत्याइ ॥3॥

‘कबीर’ चेरा संत का, दासनि का परदास ।
कबीर ऐसैं होइ रह्या, ज्यूं पाऊँ तलि घास ॥4॥

रोड़ा ह्वै रहो बाट का, तजि पाषंड अभिमान ।
ऐसा जे जन ह्वै रहै, ताहि मिलै भगवान ॥5॥

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