हमारे समय में प्रेम
Hamare samay me prem
चिठ्ठियाँ तो थी नहीं की जुगा कर रखते
बस कुछ एस०एम०एस० थे
बहुत दिनों तक बचे रहे
मगर एक दिन मिटना ही था मिट गए
हमारे समय में प्रेम
कोई निशानी नहीं छोड़ता
कुछ स्मृतियाँ होती है जो बहुत दिनों तक
बरछे की तरह चुभी रहती है
धीरे धीरे उनका लोहा भी गल जाता है!