वे मुस्कराते फूल नहीं -महादेवी वर्मा
Ve Muskrate Phool nahi – Mahadevi Verma
वे मुस्कराते फूल नहीं
जिनको आता है मुरझाना
वे तारों के दीप नहीं
जिनको भाता है बुझ जाना
वे नीलम के मेघ नहीं
जिनको है घुल जाने की चाह
वह अनंत ऋतुराज नहीं
जिसने देखी जाने की राह
वे सूने से नयन नहीं
जिनमें बनते आँसू मोती
यह प्राणों की सेज नहीं
जिसमें बेसुध पीड़ा सोती
ऐसा तेरा लोक वेदना
नहीं नहीं जिसमें अवसाद
जलना जाना नहीं नहीं
जिसने जाना मिटने का स्वाद
क्या अमारों का लोक मिलेगा
तेरी करुणा का उपहार
रहने दो हे देव अरे
यह मेरा मिटने का अधिकार