कोई हमदम न रहा कोई सहारा न रहा – मजरूह सुल्तानपुरी
Koi hamdam nar raha koi sahara na raha – Majruh Sultanpuri
कोई हमदम न रहा, कोई सहारा न रहा
हम किसी के न रहे कोई हमारा न रहा
शाम तन्हाई की है आयेगी मंजिल कैसे
जो मुझे राह दिखा दे वही तारा न रहा
ए नजारों न हँसो मिल न सकूंगा तुमसे
वो मेरे हो न सके मै भी तुम्हारा न रहा
क्या बताऊँ मैं किधर यूँ ही चला जाता हूँ
जो मुझे फिर से बुला ले वो इशारा न रहा