Hindi Poem of Majruh Sultanpuri “Masrato ko ye ahle-havas na kho dete , “मसर्रतों को ये अहले-हवस न खो देते ” Complete Poem for Class 10 and Class 12

मसर्रतों को ये अहले-हवस न खो देते – मजरूह सुल्तानपुरी

Masrato ko ye ahle-havas na kho dete – Majruh Sultanpuri

 

मसर्रतों को ये अहले-हवस न खो देते
जो हर ख़ुशी में तेरे ग़म को भी समो देते

कहां वो शब कि तेरे गेसुओं के साए में
ख़याले-सुबह से आस्ती भिगो देते

बहाने और भी होते जो ज़िन्दगी के लिए
हम एक बार तेरी आरजू भी खो देते

बचा लिया मुझे तूफां की मौज नें वर्ना
किनारे वाले सफ़ीना मेरा डुबो देते

जो देखते मेरी नज़रो पे बंदिशों के सितम
तो ये नज़ारे मेरी बेबसी पे रो देते

कभी तो यूं भी उमंडते सरश्के-ग़म ‘मजरूह’
कि मेरे ज़ख्मे तमन्ना के दाग धो देते

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