गाली में गरिमा घोल-घोल -माखन लाल चतुर्वेदी
Gali me garima ghol-ghol – Makhan Lal Chaturvedi
गाली में गरिमा घोल-घोल,
क्यों बढ़ा लिया यह नेह-तोल।
कितने मीठे, कितने प्यारे,
अर्पण के अनजाने विरोध,
कैसे नारद के भक्ति-सूत्र,
आ गये कुंज-वन शोध-शोध!
हिल उठे झूलने भरे झोल,
गाली में गरिमा घोल-घोल।
जब बेढंगे हो उठे द्वार,
जब बेकाबू हो उठा ज्वार,
इसने जिस दिन घनश्याम कहा,
वह बोल उठा परवर-दिगार।
मणियों का भी क्या बने मोल।
गाली में गरिमा घोल-घोल।
ये बोले इनका मृदुल हास्य,
वे कहें कि उनके मृदुल बोल,
भूगोल चुटकियाँ देता है,
वह नाच-नाच उट्टा खगोल।
कुछ तो अपने फरफन्द खोल,
गाली में गरिमा घोल-घोल॥