Hindi Poem of Nagarjun “Agnibij“ , “अग्निबीज” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

अग्निबीज

Agnibij

अग्निबीज

तुमने बोए थे

रमे जूझते,

युग के बहु आयामी

सपनों में, प्रिय

खोए थे!

अग्निबीज

तुमने बोए थे

तब के वे साथी

क्या से क्या हो गए

कर दिया क्या से क्या तो,

देख–देख

प्रतिरूपी छवियाँ

पहले खीझे

फिर रोए थे

अग्निबीज

तुमने बोए थे

ऋषि की दृष्टि

मिली थी सचमुच

भारतीय आत्मा थे तुम तो

लाभ–लोभ की हीन भावना

पास न फटकी

अपनों की यह ओछी नीयत

प्रतिपल ही

काँटों–सी खटकी

स्वेच्छावश तुम

शरशैया पर लेट गए थे

लेकिन उन पतले होठों पर

मुस्कानों की आभा भी तो

कभी–कभी खेला करती थी!

यही फूल की अभिलाषा थी

निश्चय¸ तुम तो

इस ‘जन–युग’ के

बोधिसत्व थे;

पारमिता में त्याग तत्व थे।

 

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